मंगलवार, 7 जुलाई 2009

भटनागर आंटी

"आज भटनागर आंटी पार्क में काफ़ी चुप बैठीं थीं", बीवी ने नच बलिये के दौरान हुए ब्रेक में मुझसे कहा। "क्यों क्या हुआ? वैसे तो वो बहुत एडवाइस देती रहती हैं!" मैंने कहा। "हाँ, लेकिन आज शायद अपने पोते की याद आ गई होगी, शीतल के गोदी के बच्चे को देख कर।" कह कर बीवी किचेन में कढ़ी चलाने चली गई।

भटनागर आंटी के बारे में जितना सुना था उससे लगता था कि काफ़ी तेज़ लेडी हैं पर साथ में उतनी ही व्यवहार कुशल और गृहस्थी में निपुण। छोटा सा परिवार है - बेटा, बहू दोनों ही सोफ्ट्वेअर इंजिनियर हैं और बेटी की शादी कर चुकी हैं। अंकल बुढापे की बीमारियों से कम ही बाहर निकलते हैं और उनसे मेरा उतना इंटरेक्शन नहीं है जितना कि कॉलोनी के और गृहस्वामियों से। इस छोटे से परिवार कि त्रासदी ये है कि बेटा, बहू अब अलग रहते हैं और इस तरह अंकल और आंटी अकेले अपने मीडियम साइज़ घर में रहते हैं। हाल ही में बहू के बेटा हुआ है और आंटी उसको देख भी चुकी हैं। बहू ख़ुद ही आई थी बेटे और पति के साथ।

ब्रेक ख़त्म हो चुका था और बीवी फ़िर मेरे बगल में आ बैठी थी। मैंने पूछा - "क्या लगता है? आंटी की वजह से ये सब हुआ या बहू की?" "पता नहीं दोनों अपनी जगह ठीक लगते हैं लेकिन आंटी को समझना चाहिए था कि ज़माना अब चेंज हो रहा है। काम काजी बहू वो भी सोफ्ट्वेअर इंजिनियर सुबह उठ कर चाय तो बनाने से रही। और रात को खाना बनाते तो मैंने देखा है उनकी बहू को। आंटी को थोड़ा और एडजस्ट करना चाहिए था।" कह कर बीवी पिछले प्रतियोगी के लिए सरोज खान के तीखे कमेंट्स सुनने लगी।

आंटी ने जितने उत्साह से अपनी इन्फोसिस की बहू को शादी से पहले ही कॉलोनी के लोगों से मिलवाया था, उसी उल्लास से वो उसकी मुंह दिखाई नहीं करवा पायीं थीं। शादी के लिए भी बहू को सिर्फ़ २ दिन की छुट्टी मिली थी जिसे वीकएंड के साथ जोड़ कर कुल ४ दिन में सब निबटाना था। इस कारण से नव-विवाहित हनीमून पर भी नहीं जा पाये थे। आगे वो और बिज़ी होते गए और फ़िर किसी आयोजन का मौका ही नहीं मिला आंटी को।



पर कुछ ही महीनों में आंटी की खुशी गायब होती दिखने लगी। पार्क में कभी कभी बहू की व्यस्तता को वो नकारात्मक तरीके से बताने लगी थीं। हमदर्द पड़ोसी होने के नाते बीवी उनकी बातें सुन तो लेती थी लेकिन यह नहीं कह पाती थी कि ये तो अब स्वीकारना ही होगा। धीरे धीरे आंटी की शिकायतें बढ़ने से ऐसा लगने लगा कि घर में कलह भी शुरू हो गई है। फ़िर पता लगा कि बहू प्रेगनंट हो गई है। लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा, बरसों पुरानी वो कहावत शायद अपना कमाल दिखा जाए कि मूल से ज्यादा सूद और पूत से ज्यादा पोता प्यारा होता है। लेकिन एक रात जाने क्या हुआ कि बहू अपनी एक सहेली के घर चली गई। आंटी करीब हफ्ता भर तक घर से बाहर नहीं निकली लेकिन घर की बातें महरी की बातों के ज़रिये बाहर निकल गयीं। प्रेगनेंसी के चलते जब बहू ने रात को भी काम में हाथ बटाने से तौबा कर लिया था तो आंटी ने सिर्फ़ ये कह दिया कि पूरा दिन तुम ऑफिस में बैठ कर काम करती हो, थोड़ा काम करना गर्भ के स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही रहेगा। इस सलाह को बहू ने सास की अन्तिम गाली माना और अपने शिशु को शिशुपाल की छाया से तुंरत दूर करने का निश्चय कर लिया।

उसके बाद बेटा बहू और पोता सिर्फ़ मेहमान की तरह आते हैं, वे ख़ुद का एक घर ले चुके हैं और उसी में शिफ्ट हो गए हैं। आंटी अब और ज्यादा समय पार्क में बिताती हैं जबकि अंकल अब ना के बराबर ही दिखाई पड़ते हैं। "आंटी की सलाह वैसे काफ़ी काम की होती हैं। कल मिर्च के खट्टे मीठे अचार के बारे में बता रहीं थीं" बीवी की आवाज़ से ध्यान टूटा। उधर सरोज खान कोरिओग्रेफेर को झाड़ रही थी "लड़की अच्छा नाच सकती है लेकिन तुमने रॉक बीट्स पर मधुबाला के स्टेप्स करवा कर सब सत्यानाश कर दिया। नासमझ के जैसे फ्यूज़न करोगे तो निहायत बकवास लगेगा, इसमें रत्ती भर भी शुबहा नहीं है और तुमने आज ये साबित करके दिखाया है।"

6 टिप्‍पणियां:

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  2. अच्छा लिखा है ............ बहुत उम्दा ........ स्वागत है आपका

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  3. हिन्दी ब्लॉगजगत् में आपका स्वागत है.

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  4. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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